बालश्रम

मेहनतकश दरारों में मैल भरे हाँथ-पाँव,
थककर ढूंढते होंगे कहीं ममता की छाँव     ।
गंदे फटे-पुराने, कोई कहानी सुनाते लिबास,
हमउम्र हो तुम मेरे, मगर एक से नहीं हालात    ।।

कोमल-नाजुक, पर इनपर चढ़ता हार नहीं,
हमारे कंधों पे, तुम्हारे बस्तों का भार नहीं        ।।

घुप अंधेरे, खुल जाती कहीं एक खिड़की
तुम्हारे धवल मुकुर से, अपनी जिंदगी निहारती
तुम्हारे रजत दर्पण से, अपनी जिंदगी निहारती
कूड़े के ढ़ेर से, जैसे खुशी बिनती वो लड़की      ।
बाप के शराब ने छीन लिया था जिसका बस्ता
अब हर टेबल कपड़ा मारता छोटू ढ़ाबेवाला,
नॉवेल-पत्रिकाएं बेचता, हर सिग्नल-हर रस्ता      ।।

आज झूलना था, खेलना था उसे भी मेले में
गर गुब्बारा उसका, थोड़ा जल्दी बिक जाता    ।
वैसे तो है मैकेनिक, पर साइंटिस्ट बनना है उसे
काश अपनी जिंदगी का भी पंचर लगा पाता       ।।

तुम नाराज़ आज, पॉकेटमनी नहीं मिलने पे,
वो मायूस गैरहाजरी के पैसे कटने पे                 ।
कुछ बन जाओ, तो आना इस ओर भी,
उम्मीदों के मशाल लेके, हाकिम को जगाने
किसी बर्बाद बचपन को उसका हक दिलाने        ।।
तबतक इंतजार करूँगा तुम्हारा, कहीं गुमशुम
खदानों में, मिलों में, सिग्नलों पे, ढ़ाबे पे............
चुप क्यूं हो....बोलो ना.... आओगे ना तुम.........   ??